पूसा बासमती धान की लोकप्रिय किस्में: किसान क्यों कर रहे हैं इनका चयन?
बासमती चावल की मांग देश और विदेशों में तेजी से बढ़ रही है। खासकर, पूसा बासमती की विभिन्न किस्में अपने उत्कृष्ट उत्पादन, सुगंध और गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं। पूसा बासमती की उन्नत किस्में जैसे 1592, 1609, 1637, 1692 और 1886 ने किसानों को बेहतर उत्पादन और उच्च बाजार मूल्य प्राप्त करने में मदद की है। इन किस्मों की खेती न केवल किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, बल्कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता और लंबे सुगंधित दानों के कारण बाजार में अपनी अलग पहचान भी बना रही है।
1) पूसा बासमती 1592: उच्च उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता
पूसा बासमती 1592 एक उन्नत किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ-साथ उच्च उपज देने में सक्षम है। इसकी विशेषताएं हैं:
- उपज: 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- पकने की अवधि: 120-125 दिन
- विशेषताएं: झुलसा रोग और कीटों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता
- दाना गुणवत्ता: लंबा, पतला और सुगंधित
किसानों को इस किस्म से उच्च बाजार मूल्य मिलता है, जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
2) पूसा बासमती 1609: सुगंधित और झुलसा रोग प्रतिरोधी
पूसा बासमती 1609 मध्यम अवधि की किस्म है, जो मुख्य रूप से सुगंधित और पतले दानों के लिए जानी जाती है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- उपज: 22-24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- पकने की अवधि: 115-120 दिन
- विशेषताएं: झुलसा रोग और कीट प्रतिरोधक
- गुणवत्ता: लंबा, चमकदार और सुगंधित दाना
इस किस्म की खेती से किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले चावल का उत्पादन मिलता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी अच्छी मांग बनी रहती है।
3) पूसा बासमती 1637: निर्यातकों की पहली पसंद
पूसा बासमती 1637 निर्यातक किसानों की पहली पसंद है। इसकी लंबी और सुगंधित दानों की वजह से इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी पसंद किया जाता है।
- उपज: 18-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- पकने की अवधि: 120-125 दिन
- विशेषताएं: अधिक सुगंध, लंबा दाना और रोग प्रतिरोधी
- गुणवत्ता: निर्यातकों के लिए उपयुक्त, कम टूटने वाला चावल
किसानों के लिए यह किस्म अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक कीमत दिलाने में सहायक होती है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
4) पूसा बासमती 1692: झुलसा रोग से सुरक्षा और बेहतरीन उपज
पूसा बासमती 1692 झुलसा रोग प्रतिरोधक किस्म है, जो कम लागत में अधिक उपज देने में सक्षम है। इसकी खेती करने से किसानों को फसल खराब होने का खतरा कम होता है।
- उपज: 23-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- पकने की अवधि: 115-120 दिन
- विशेषताएं: झुलसा और कीट प्रतिरोधक क्षमता
- गुणवत्ता: लंबा और सुगंधित दाना
यह किस्म विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जहां झुलसा रोग का प्रकोप अधिक होता है।
5) पूसा बासमती 1886: उन्नत उत्पादन और निर्यात के लिए अनुकूल
पूसा बासमती 1886 उच्च उपज और बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। इसकी खेती करने से किसानों को न केवल घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बेहतर मूल्य मिलता है।
- उपज: 25-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- पकने की अवधि: 110-115 दिन
- विशेषताएं: रोग प्रतिरोधक और बेहतर उपज क्षमता
- गुणवत्ता: लंबा, पतला और सुगंधित दाना
यह किस्म बेहतरीन निर्यात गुणवत्ता के लिए जानी जाती है, जिससे किसानों को उच्च लाभ मिलता है।
6) पूसा बासमती किस्मों के फायदे
क्यों पूसा बासमती किस्मों की खेती फायदेमंद है?
- उच्च उपज: ये किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक उपज देती हैं।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: झुलसा, कीट और अन्य रोगों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता।
- बेहतर बाजार मूल्य: उच्च गुणवत्ता के कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग।
- कम लागत में अधिक लाभ: आधुनिक तकनीकों के साथ इन किस्मों की खेती से कम लागत में बेहतर उत्पादन संभव है।
- जलवायु अनुकूलता: ये किस्में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अच्छी उपज देती हैं।
7) पूसा बासमती की खेती के लिए टिप्स
- समय पर बुवाई करें: जून के अंत से जुलाई की शुरुआत में बुवाई करना सबसे उचित समय है।
- सिंचाई प्रबंधन: आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें।
- खाद और उर्वरक का संतुलित उपयोग: जैविक और रासायनिक उर्वरकों का सही अनुपात में प्रयोग करें।
- कीट और रोग नियंत्रण: झुलसा रोग और कीट नियंत्रण के लिए उचित दवा और जैविक उपाय अपनाएं।
- कटाई और भंडारण: सही समय पर कटाई करें और चावल का भंडारण उचित वातावरण में करें।
निष्कर्ष
पूसा बासमती की विभिन्न उन्नत किस्में न केवल उच्च उपज और गुणवत्ता प्रदान करती हैं, बल्कि ये किस्में रोग प्रतिरोधक भी हैं। किसानों को इन किस्मों की खेती से बेहतर उत्पादन और उच्च बाजार मूल्य मिलता है। पूसा बासमती 1592, 1609, 1637, 1692 और 1886 जैसी किस्में किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो रही हैं और भारत के बासमती चावल की वैश्विक मांग को भी बढ़ावा दे रही हैं। और पढ़े
