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Mansoon > Blog > Blog > स्ट्रॉबेरी फसल में लगने वाले 9 प्रमुख रोगों का प्रबंधन करें, अच्छी उपज मिलेगी।
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स्ट्रॉबेरी फसल में लगने वाले 9 प्रमुख रोगों का प्रबंधन करें, अच्छी उपज मिलेगी।

mansoon.info
Last updated: 2025/02/03 at 11:25 PM
By mansoon.info

स्ट्रॉबेरी की फसल को बचाएं : 9 प्रमुख रोगों का सही प्रबंधन करें!

स्ट्रॉबेरी फसल में लगने वाले 9 प्रमुख रोगों का प्रबंधन करें, अच्छी उपज मिलेगी:

Contents
स्ट्रॉबेरी की फसल को बचाएं : 9 प्रमुख रोगों का सही प्रबंधन करें! स्ट्रॉबेरी के प्रमुख रोगों का नियंत्रणConclusion:

स्ट्रॉबेरी की फसल को विभिन्न रोगों से बचाने से अधिक उत्पादन और गुणवत्तायुक्त फल मिल सकते हैं। किसानों का अधिकतम लाभ रोगों की शीघ्र पहचान और उचित प्रबंधन उपायों से मिल सकता है। इन रोगों से बचने के लिए, सही समय पर फफूंदनाशी का उपयोग, जल निकासी की व्यवस्था और स्वच्छ खेती का पालन किया जा सकता है। इससे स्ट्रॉबेरी की खेती सफल और लाभदायक बन सकती है।

स्ट्राबेरी: स्ट्रॉबेरी, पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक लाभकारी होने के कारण भारत में हाल ही में बहुत लोकप्रिय हो गया है। स्ट्रॉबेरी को पॉलीहाउस, हाइड्रोपोनिक्स और खुले खेतों में खेती करने के लिए कई अलग-अलग मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी लगभग 600 प्रजातियाँ पूरे विश्व में पाई जाती हैं, लेकिन भारत में केवल कुछ ही किस्में उगाई जाती हैं। स्ट्रॉबेरी एक नाजुक, हल्का खट्टा-मीठा फल है। इसकी अलग लाल रंगत और गंध इसे बहुत आकर्षक बनाती है। इसमें एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन C, A, K, प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फोलिक एसिड, फॉस्फोरस और पोटैशियम हैं। ये पोषक तत्व त्वचा की चमक बढ़ाते हैं, आँखों की रोशनी बढ़ाते हैं और दाँतों की सफेदी को बचाते हैं।

हाल ही में बिहार के औरंगाबाद और आसपास के क्षेत्रों में स्ट्रॉबेरी की खेती बहुत लोकप्रिय हो गई है। लेकिन किसानों को इस फसल में लगने वाले रोगों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होने से उत्पादन प्रभावित हो रहा है। हम इस लेख में स्ट्रॉबेरी के मुख्य रोगों और उनके प्रभावी उपचारों पर चर्चा करेंगे।

स्ट्रॉबेरी के प्रमुख रोगों का नियंत्रण

1. पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot Disease) के लक्षण: यह स्ट्रॉबेरी का एक सामान्य रोग है, जो गहरे बैंगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे के रूप में पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिखाई देता है। धब्बे 3-6 मिमी तक बढ़ते हैं और भूरे या सफेद रंग में बदल सकते हैं। पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है जब प्रभावित पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं।

प्रबंधन : हल्की सिंचाई करके अतिरिक्त नमी से बचें। संक्रमित पत्तियों को निकालकर खारिज कर दें। 10 दिन के अंतराल पर, मैंकोजेब, हेक्साकोनाजोल या साफ को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

 

2. ग्रे मोल्ड के लक्षण : यह रोग फूलों, फलों और तनों को नुकसान पहुंचाता है। संक्रमित फूलों और फलों के डंठल मुरझाने लगते हैं। भूरे रंग के सड़न विकसित होते हैं और सफेद-भूरे रंग की फफूंदी उन पर जम जाती है।

प्रबंधन : नुकसानदायक भागों को हटाकर खेत से बाहर निकाल दें। रोपाई करते समय अधिक नमी से बचें। मैंकोजेब या हेक्साकोनाजोल डालें।

3. रेड स्टेल या रेड कोर रोग के लक्षण: पौधे की जड़ें अंदर से लाल हो जाती हैं, जो जल संचरण को बाधित करता है। शुष्क मौसम में पौधे मुरझाने लगते हैं और वृद्धि नहीं करते। रोगग्रस्त पौधे जून से जुलाई तक मर सकते हैं।

प्रबंधन : खेत से जल निकासी की उचित प्रणाली बनाएं। संक्रमित पौधे निकालें।10 दिन के अंतराल पर, एक लीटर पानी में दो ग्राम हेक्साकोनाजोल छिड़कें।

4. विल्ट रोग के लक्षण: पौधे अचानक मुरझाने लगते हैं, खासकर गर्मी में। प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और झड़ने लगती हैं। छोटे फल गिरने लगते हैं।

प्रबंधन: खेत को भराव न होने दें। 2 ग्राम हेक्साकोनाजोल या कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में डालें।

 

5. पाउडरी मिल्ड्यू के लक्षण : पत्तियों के किनारे उठने लगते हैं। पत्तियों पर बैंगनी धब्बे बनते हैं। प्रभावित फल सफेद चूर्ण की तरह कवक से ढके हुए हैं।

प्रबंधन : फसल में वायु संचार को बढ़ाने के लिए पौधों को उचित दूरी पर रोपें। 2 ग्राम सल्फर आधारित फफूंदनाशक प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

 

6. अल्टरनेरिया Leaf Spot Disease के लक्षण: पत्तियों में गोल, लाल-बैंगनी धब्बे हैं। पत्तियों का समय से पहले गिरना प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है।

प्रबंधन : खेत में बीमार पत्तियों को नष्ट करें। मैंकोजेब या साफ फफूंदनाशक डालें।

 

7. एन्थ्रेक्नोज के लक्षण (Anthracnose, also known as Black Spot Disease): पत्तियों, तनों और फलों पर काले धब्बे होते हैं। प्रभावित फल गलने लगते हैं। पौधे मुरझा सकते हैं और गिर सकते हैं।

प्रबंधन : साफ-सुथरी खेती करें। मैंकोजेब या हेक्साकोनाजोल का छिड़काव करें।

 

8. क्राउन रोट बीमारी के लक्षण: दोपहर में पौधे मुरझा जाते हैं और शाम को फिर से ठीक हो जाते हैं। जड़ों से लाल-भूरा धुआं निकलता है।

प्रबंधन : जल निकासी बेहतर करें। Hexanol छिड़काव करें।

 

9. एंगुलर लीफ स्पॉट बीमारी (Angular Leaf Spot Disease) का संकेत: पत्तियों की निचली सतह पर पानी से भरे छोटे घाव हैं। रोग विकसित होने पर लाल धब्बे बनते हैं।

प्रबंधन : संक्रमित पौधे निकालें। जैविक कवकनाशी का उपयोग करना सुनिश्चित करें।

Conclusion:

स्ट्रॉबेरी की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प हो सकती है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक करने के लिए फसल में लगने वाले विभिन्न रोगों की पहचान और उनका सही प्रबंधन आवश्यक है। पत्ती धब्बा रोग, ग्रे मोल्ड, रेड स्टेल, विल्ट, पाउडरी मिल्ड्यू, एन्थ्रेक्नोज, और अन्य रोग फसल की वृद्धि और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। इन रोगों से बचाव के लिए सही समय पर जैविक और रासायनिक फफूंदनाशकों का उपयोग, जल निकासी की उचित व्यवस्था और स्वच्छ खेती की तकनीकों को अपनाना आवश्यक है।

यदि किसान इन सभी सावधानियों का पालन करते हैं, तो वे न केवल अपनी फसल को स्वस्थ रख सकते हैं बल्कि अधिक उत्पादन प्राप्त करके अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। समय पर रोगों की रोकथाम और प्रभावी उपचार से स्ट्रॉबेरी की गुणवत्ता बनी रहती है, जिससे बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। इसलिए, सही तकनीक और सतर्कता अपनाकर स्ट्रॉबेरी की खेती को अधिक सफल और टिकाऊ बनाया जा सकता है।

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