कटहल (Artocarpus heterophyllus), जो भारत में एक महत्वपूर्ण और पोषण से भरपूर फल है, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बहुत उगाया जाता है। हालांकि, यह फसल कई रोगों का शिकार होती है, जिनमें से एक प्रमुख और सामान्य रोग पत्तियों पर धब्बे (Leaf Spot Disease) का है। यह रोग फफूंदजनित संक्रमण के कारण होता है और यदि समय पर नियंत्रित न किया जाए तो यह फसल की उत्पादकता और पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
पत्तियों पर धब्बे रोग के प्रमुख कारण
कटहल में पत्तियों पर धब्बे का मुख्य कारण फफूंदजनित रोगजनक होते हैं, जो पौधों की पत्तियों पर धब्बे बना देते हैं। ये रोगजनक हैं:
- कोलेटोट्राइकम (Colletotrichum spp.)
- सर्कोस्पोरा (Cercospora spp.)
- कॉर्नेस्पोरा (Cornespora spp.)
- अल्टरनेरिया (Alternaria spp.)
इन रोगजनकों के फैलाव में कुछ प्रमुख कारक सहायक होते हैं:
- अधिक आर्द्रता (80-90%)
- गर्म और नम वातावरण (25-35°C)
- लगातार बारिश और जलभराव
- अपर्याप्त वायु संचार
- संक्रमित पौध सामग्री और खराब कृषि प्रथाएँ
पत्तियों पर धब्बे रोग के लक्षण
कटहल के पत्तियों पर धब्बे रोग के लक्षण शुरुआती अवस्था में हल्के हो सकते हैं, लेकिन समय के साथ ये गंभीर हो सकते हैं।
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प्रारंभिक अवस्था:
- पत्तियों पर छोटे, काले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
- धब्बों के चारों ओर हल्का पीला रंग हो सकता है, जो शुरुआती लक्षण हैं।
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मध्यम संक्रमण:
- धब्बे बड़े होकर आपस में मिल सकते हैं।
- प्रभावित पत्तियों का हरितलवक नष्ट होने लगता है, जिससे पौधे का प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है।
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गंभीर संक्रमण:
- पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं और समय से पहले गिरने लगती हैं।
- पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जिससे कटहल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
पत्तियों पर धब्बे रोग का प्रभावी प्रबंधन
कटहल के पत्तियों पर धब्बे रोग का प्रभावी प्रबंधन करने के लिए एक संयुक्त दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें सांस्कृतिक, जैविक, रासायनिक और खाद्य उपायों का संतुलित उपयोग शामिल हो।
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सांस्कृतिक (कल्चरल) उपाय:
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कटाई और छंटाई:
संक्रमित शाखाओं और पत्तियों को नियमित रूप से हटा दें और पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें ताकि वायु संचार सुचारू रूप से हो सके। -
स्वच्छता और फसल अवशेष प्रबंधन:
रोगग्रस्त पत्तियों को खेत से हटा कर नष्ट करें और खेत में पानी का ठहराव न होने दें। -
संतुलित उर्वरक प्रबंधन:
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा पौधों को दें, और जैव उर्वरकों का उपयोग करें ताकि पौधे स्वस्थ रहें। -
बाहरी फसलें:
कटहल के साथ अदरक या हल्दी जैसी फसलें लगाने से इस बीमारी के प्रसार को कम किया जा सकता है।
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जैविक नियंत्रण उपाय:
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लाभकारी सूक्ष्मजीवों का उपयोग:
ट्राइकोडर्मा विराइड (Trichoderma viride) और प्सूडोमोनास फ्लुओरेसेंस (Pseudomonas fluorescens) जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रोगजनकों को दबाने में मदद कर सकता है। -
जैविक कवकनाशक:
नीम, लहसुन और अन्य जैव-निष्कर्षों से बने कवकनाशकों का छिड़काव करें, जो प्राकृतिक तरीके से रोग को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
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रासायनिक प्रबंधन:
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यदि रोग की तीव्रता अधिक हो तो उचित कवकनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।
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तांबा आधारित कवकनाशी:
बोर्डो मिक्सचर (1%) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव करें। -
संपर्क कवकनाशी:
मैनकोजेब (75% WP) या क्लोरोथालोनिल (2-2.5 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें। -
प्रणालीगत कवकनाशी:
कार्बेन्डाजिम (0.1%) या प्रोपिकोनाज़ोल (0.1%) का छिड़काव करें। -
संयुक्त कवकनाशी:
कार्बेन्डाजिम + मैनकोजेब (0.2%) या हेक्साकोनाजोल (0.1%) का छिड़काव करें। -
छिड़काव कार्यक्रम:
- पहला छिड़काव: रोग के शुरुआती लक्षण दिखने पर।
- दूसरा छिड़काव: 10-15 दिन बाद।
- तीसरा छिड़काव: आवश्यकतानुसार।
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प्रतिरोधी किस्मों का चयन:
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।
- स्वस्थ और प्रमाणित पौध सामग्री से रोपण करें।
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निगरानी और शीघ्र हस्तक्षेप:
- नियमित रूप से साप्ताहिक निरीक्षण करें और किसी भी लक्षण के दिखने पर तुरंत नियंत्रण उपाय अपनाएं।
- मौसम की निगरानी करें और आर्द्र मौसम में विशेष ध्यान रखें।
निष्कर्ष
कटहल की फसल में पत्तियों पर धब्बे रोग का समय पर निदान और नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए एक प्रभावी रोग प्रबंधन प्रणाली का पालन करना चाहिए जिसमें जैविक, रासायनिक और सांस्कृतिक उपायों का संतुलित प्रयोग किया जाए। किसानों को नियमित फसल निगरानी करनी चाहिए और इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों का पता चलने पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। इस तरह से कटहल की फसल को इस रोग से बचाकर उसकी उत्पादकता और गुणवत्ता को बनाए रखा जा सकता है।
