दुनिया भर में खाद्यान्न संकट बढ़ेगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन कृषि पर गहरा असर डालेगा!
बदलते वातावरण: भारत में खाद्यान्न संकट को कम करने के लिए सरकार को कृषि नीतियों में सुधार करना होगा। सरकार को खाद्यान्न की मांग और आपूर्ति को संतुलित करना होगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान और ग्रीनहाउस गैसों ने खाद्यान्न उत्पादन पर असर डाला है।
दुनिया भर में खाद्यान्न संकट बढ़ता जा रहा है और आने वाले समय में यह और भी गंभीर हो सकता है। खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने चेतावनी दी है कि तापमान में बढ़ोतरी के कारण खाद्यान्न उत्पादन में 18 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है, जिसमें भारत भी शामिल है। गेहूं जैसे प्रमुख अनाजों पर यह परिस्थिति सबसे अधिक असर डालेगी।
जलवायु बदलाव के प्रभाव:
धरती का बढ़ता तापमान मानव जाति को खतरे में डालता है। पानी और खाद्यान्न इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से ही देखा जा रहा है, विशेष रूप से द्वीपीय देशों और अल्पविकसित देशों में। भारत में जलवायु परिवर्तन से कई बदलाव हुए हैं। हिमालय में ग्लेशियर पिघलने लगे हैं, इससे समुद्र का स्तर बढ़ेगा और अधिक बाढ़ की घटनाएं होंगी। इसके अलावा, भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है, जिससे समुद्र का बढ़ता स्तर देश की तटीय इलाकों में बड़ी चुनौती बन सकता है।
तापमान और मौसम चक्र में बदलाव: धरती का औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, जिससे तूफान, बाढ़ और सूखा की दरें बढ़ी हैं। 10-20 मिलीमीटर भी समुद्र का स्तर बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन से भारत का मौसम चक्र भी बदल गया है। गर्मी बढ़ी है और ठंड बढ़ी है। किसानों के लिए बेमौसम बारिश, पानी की कमी और अन्य असमान मौसम परिस्थितियां एक बड़ी चुनौती बन गई हैं।
खाद्य संकट और उसकी वजह:
हाल ही में खाद्य एवं कृषि संगठन ने जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन भारत में खाद्यान्न उत्पादन को 18 प्रतिशत तक कम कर सकता है, जिससे 125 मिलियन टन खाद्यान्न की कमी हो सकती है। तापमान बढ़ सकता है और यह संकट बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्यान्न उत्पादन में आने वाले 30 वर्षों में और कमी हो सकती है। जलवायु परिवर्तन से अधिक होने वाली आपदाएं, जैसे बाढ़ और सूखा, इसका मुख्य कारण हैं।
ग्रीनहाउस गैसों के परिणाम:
ग्रीनहाउस गैसों (जैसे नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड) का उत्सर्जन तापमान में वृद्धि का मुख्य कारण है। गेहूं और चावल जैसे प्रमुख अनाजों का उत्पादन 32% तक कम हो सकता है अगर इन गैसों का उत्सर्जन दोगुना हो जाता है। डॉ. आरके पचौरी, भारतीय कृषि आयोग के अध्यक्ष, कहते हैं कि हर फसल के लिए अलग-अलग वातावरण, मिट्टी और नमी की आवश्यकता होती है। ग्लोबल वार्मिंग ने इन घटकों को असंतुलित कर दिया है, जो कृषि उत्पादन पर बुरा असर डाल रहा है।
भारत में खाद्य संकट की वजह :
भारत में जलवायु परिवर्तन ही नहीं, कुछ सरकारी नीतियों और कृषि क्षेत्र की परिस्थितियों से भी खाद्यान्न संकट बढ़ रहा है। कृषि मूल्य आयोग के अनुसार, देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन पिछले 10 वर्षों में 18 से 19 करोड़ टन के बीच रहा है, जबकि खाद्यान्न की मांग हर साल 2.5% बढ़ी है। यही कारण है कि आने वाले समय में खाद्यान्न की आपूर्ति कैसे होगी, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
कृषि क्षेत्र की नीति में कमियां :
सरकारी नीतियों में कई कमियां हैं, जैसे कि उपजाऊ भूमि पर विशेष आर्थिक जोन बनाने की योजनाएं, जबकि कृषि भूमि का रकबा लगातार घट रहा है, खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के बजाय। इसके अलावा, देश में किसानों को पर्याप्त मदद नहीं मिल रही है, लेकिन सरकार विदेश से खाद्यान्न आयात कर रही है। खेती क्षेत्र में अब बड़े-बड़े उद्योगपति आ रहे हैं, जो किसानों से सीधे खाद्यान्न खरीदकर उसे प्रसंस्करण कर रहे हैं। इस प्रकार, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कृषि क्षेत्र पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
संभावित खतरा :
भारत को खाद्यान्न के मामले में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है यदि भविष्य में कोई प्राकृतिक विपत्ति या अन्य संकट आता है। सरकार को कृषि नीतियों में सुधार करके किसानों को अधिक समर्थन देना होगा और खाद्यान्न की आपूर्ति को सुनिश्चित करना होगा।
