आसान और फायदेमंद: मूंग की खेती से मिलेगा अतिरिक्त लाभ!
खरगोन, मध्य प्रदेश: जैसे-जैसे रबी सीजन की फसलें तैयार हो रही हैं, किसानों के पास खेतों को खाली छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। होली के बाद, खासकर मार्च के महीने में, अधिकांश खेतों में रबी फसल जैसे गेहूं, चना, मसूर आदि की कटाई हो जाती है और खेत खाली हो जाते हैं। इस समय का अधिकतर हिस्सा बिना फसल के रहते हुए व्यर्थ जाता है, जिससे किसानों के पास कोई काम नहीं रहता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खाली समय का सही इस्तेमाल कर किसानों को अतिरिक्त मुनाफा भी मिल सकता है?
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, रबी फसल की कटाई के बाद किसान मूंग की खेती शुरू करके न केवल अपने खेतों का सही इस्तेमाल कर सकते हैं, बल्कि कम समय में अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। मूंग की कुछ विशेष किस्में 75 से 80 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं, जो किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती हैं। इन किस्मों की खेती से किसानों को न केवल पैदावार का लाभ मिलेगा, बल्कि वे खेतों की उर्वरता भी बनाए रख सकेंगे।
मूंग की खेती से कम खर्च में ज्यादा मुनाफा
खरगोन जिले के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि रबी फसल की कटाई के बाद जब खेत खाली हो जाते हैं, तब किसान मूंग की खेती कर सकते हैं। मूंग की फसल कम पानी और कम मेहनत में जल्दी तैयार हो जाती है। यह फसल 75 से 80 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है, और किसानों को इस पर अधिक खर्च भी नहीं आता। खासकर उस वक्त जब अगली फसल की बुवाई जून या जुलाई में होनी हो, तब इस समय में मूंग की खेती से अतिरिक्त आय मिल सकती है।
किसानों को इस समय का सबसे बेहतर फायदा उठाने के लिए यह जरूरी है कि वे मूंग की ऐसी किस्मों का चयन करें जो कम समय में ज्यादा पैदावार देती हों। साथ ही, इन्हें कम लागत में उगाया जा सकता है, जिससे किसानों की लागत में भी कमी आएगी।
बेहतर किस्में: मूंग की खेती के लिए विकल्प
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह, जो खरगोन कृषि विज्ञान केंद्र में पदस्थ हैं, बताते हैं कि खरगोन और इसके आसपास के क्षेत्रों में मूंग की कुछ खास किस्में उपलब्ध हैं, जो कम समय में उच्च पैदावार देती हैं। ये किस्में खासकर गर्मी में बेहतर परिणाम देती हैं। निमाड़ क्षेत्र में किसानों के पास इन किस्मों के बीज आसानी से उपलब्ध हैं।
इनमें कुछ प्रमुख किस्में हैं:
- IPM 410-3 (शिखा): यह किस्म 75-80 दिनों में तैयार हो जाती है और इसमें पैदावार भी अधिक होती है।
- IPM 205-7 (विराट): यह किस्म भी 75-80 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है और इसके बीज बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं।
- MH421: यह एक और किस्म है, जो गर्मी में बेहतर परिणाम देती है और जल्दी तैयार हो जाती है।
ये सभी किस्में जल्दी तैयार होती हैं और कम पानी की आवश्यकता होती है। इनकी खेती करके किसान न केवल खेतों में उपज की वृद्धि कर सकते हैं, बल्कि गर्मी के मौसम में अपनी आय को भी बढ़ा सकते हैं।
कम समय में अधिक पैदावार का लाभ
मूंग की खेती से न केवल किसानों को ज्यादा पैदावार मिलती है, बल्कि इसके कई और फायदे भी होते हैं। मूंग की फसल को उगाने से खेतों की मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। यह फसल न केवल किसानों को अतिरिक्त मुनाफा देती है, बल्कि अगले सीजन में फसल उगाने के लिए खेतों की स्थिति को भी बेहतर बनाती है। मूंग की खेती करने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ती है, जो अन्य फसलों के लिए फायदेमंद होती है।
इसके अलावा, मूंग की फसल का बाजार मूल्य भी बढ़िया होता है, खासकर उस समय जब अन्य फसलें तैयार नहीं होतीं। इस प्रकार, मूंग की खेती एक आदर्श समाधान हो सकता है जब खेत खाली हों और किसान अतिरिक्त आय की तलाश में हों।
आर्थिक फायदे और विपणन
मूंग की फसल के विपणन में भी कोई बड़ी समस्या नहीं होती, क्योंकि यह भारतीय बाजार में प्रमुख दलहन फसल के रूप में बिकती है। किसानों को अपनी मूंग की फसल बेचने के लिए स्थानीय मंडियों में कोई दिक्कत नहीं आती, और मूल्य भी अच्छा मिलता है। इसके अलावा, मूंग की खेती को सरकार द्वारा भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे किसान अपनी उपज को सरकारी योजनाओं के तहत भी बेच सकते हैं।
मूंग की खेती से जुड़ी एक और खास बात यह है कि यह फसल कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी भुगतान मिलता है। इससे किसानों को तुरंत आर्थिक सहायता मिलती है, जो वे अन्य जरूरी कार्यों में लगा सकते हैं।
निष्कर्ष:
रबी फसल की कटाई के बाद खेतों को खाली छोड़ने के बजाय किसानों को मूंग की खेती करनी चाहिए। मूंग की कुछ विशेष किस्में 75 से 80 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं, जिससे किसानों को कम समय में अच्छा मुनाफा हो सकता है। इसके अलावा, मूंग की खेती से मिट्टी की उर्वरकता भी बनी रहती है, जो आने वाली फसलों के लिए फायदेमंद होती है। इस प्रकार, मूंग की खेती से किसानों को न केवल अतिरिक्त आय प्राप्त होगी, बल्कि खेतों की उर्वरक क्षमता भी बनी रहेगी।
