परिचय
मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में अब किसान पारंपरिक गेहूं-धान की खेती से आगे बढ़कर आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। नई तकनीकों और उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाकर किसान अपनी आमदनी को दोगुना कर रहे हैं। इसी तरह झारखंड के पलामू जिले के किसान राजू कुमार मेहता ने भी अपनी किस्मत बदली और स्ट्रॉबेरी की खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं।
कैसे हुई शुरुआत?
पलामू जिले के हरिहरगंज प्रखंड के जगदीशपुर निवासी राजू कुमार मेहता ने पहले पारंपरिक खेती की, लेकिन अधिक लाभ न मिलने के कारण उन्होंने 2020 में 1 एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला किया। इस प्रयोग से उन्हें 2.5 से 3 लाख रुपये तक का मुनाफा हुआ। इस सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने अब 5 एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू कर दी है, जिससे उनकी कमाई कई गुना बढ़ गई है।
रोजाना निकलता है 300 किलो फल
राजू कुमार बताते हैं कि इस बार उन्होंने 5 एकड़ में स्ट्रॉबेरी की फसल लगाई है, जिससे हर दिन लगभग 2.5 से 3 क्विंटल (250-300 किलो) स्ट्रॉबेरी की पैदावार हो रही है। उनकी स्ट्रॉबेरी की मांग पलामू समेत गढ़वा, रांची, बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक फैली हुई है। इसके अलावा, उनकी स्ट्रॉबेरी की डिमांड दिल्ली, कोलकाता और अन्य महानगरों में भी बढ़ रही है, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है।
स्ट्रॉबेरी की खेती से 10-12 लाख तक की कमाई
राजू कुमार की मेहनत और नई तकनीकों के उपयोग से वे 5 एकड़ की खेती से लगभग 10-12 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं। स्ट्रॉबेरी की अच्छी गुणवत्ता और उच्च मांग के कारण उन्हें बड़े शहरों से भी ऑर्डर मिल रहे हैं।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लाभ
- तेजी से मुनाफा: स्ट्रॉबेरी की फसल सिर्फ 4 महीने में तैयार हो जाती है, जिससे किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
- बाजार में उच्च मांग: स्ट्रॉबेरी की मांग शहरी क्षेत्रों में अधिक होती है, जिससे बिक्री की समस्या नहीं होती।
- कम पानी की जरूरत: स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पारंपरिक फसलों की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है।
- आधुनिक तकनीकों से अधिक उत्पादन: ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग तकनीक से किसानों को अधिक उपज मिलती है।
- अतिरिक्त आय का स्रोत: अन्य पारंपरिक फसलों के साथ-साथ स्ट्रॉबेरी की खेती से किसान अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं।
कैसे करें स्ट्रॉबेरी की खेती?
- भूमि का चयन: स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- सिंचाई प्रणाली: ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाने से पानी की बचत होती है और फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
- बुआई का समय: अक्टूबर से नवंबर के बीच स्ट्रॉबेरी की रोपाई की जाती है।
- खाद एवं उर्वरक: जैविक खादों और गोबर की खाद का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
- कटाई और भंडारण: फसल 4 महीने में तैयार हो जाती है। स्ट्रॉबेरी को ताजगी बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है।
भविष्य की योजनाएँ
राजू कुमार अब अपनी खेती का विस्तार कर स्ट्रॉबेरी की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की योजना बना रहे हैं, जिससे वे स्ट्रॉबेरी जैम, जूस और अन्य उत्पाद बनाकर अपनी आमदनी और बढ़ा सकें।
