सही सिंचाई, जबरदस्त पैदावार: मौसम चाहे जैसा भी हो, रबी फसल का धमाका!
बदलते मौसम में रबी फसलों की सिंचाई के लिए अपनाएं ये विधियां, मिलेगी अच्छी पैदावार। बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए रबी फसलों की सिंचाई की सही योजना बनाना महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार के गेहूं, जौ, चना, मसूर, मटर और सरसों में जल की आवश्यकता होती है। सही समय पर सिंचाई फसल उत्पादकता को बढ़ाती है। किसानों को जल संरक्षण करने से अधिक उत्पादन मिल सकता है।
आज के बदलते वातावरण और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए, भरपूर फसल उत्पादन के लिए क्रांतिक परिस्थितियों में पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इन अवस्थाओं में पानी की कमी फसल की पैदावार को प्रभावित करती है। फसल में ये अवस्थाएं अलग-अलग समय पर आती हैं। इस तरह, बताई गई बातों का ध्यान रखते हुए किसान भाई रबी फसलों में सिंचाई की व्यवस्था करेंगे तो निश्चित रूप से उच्च उत्पादन प्राप्त करेंगे।
इस लेख में किसानों ने सिंचाई की सही समय पर रबी फसलों को क्या करना चाहिए बताया गया है. इससे पौधे सही मात्रा में पानी का उपयोग कर भरपूर उत्पादन दे सकते हैं और सिंचाई जल का सदुपयोग भी कर सकते हैं।
फसलों की क्रांतिकारी स्थिति: क्रांतिक परिस्थितियों में पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है। जैसे कि फसलों की वृद्विकाल में जल की कमी से पौधे बहुत चिंतित होते हैं, इसे क्रांतिक अवस्था कहते हैं। रबी फसलों की विभिन्न क्रांतिक अवस्था निम्नलिखित हैं:
1) गेहूं: गेहूं के जीवनकाल में पांच अवस्थाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। पानी की कमी इन परिस्थितियों में उत्पादन को प्रभावित करती है।
गेहूं की बुवाई के २० से २५ दिन बाद द्वितीयक जड़ या क्राउन रूट बनना शुरू होता है। इस अवस्था में फसल की दूसरी जड़े भूमि की ऊपरी सतह पर निकलने लगती हैं और भूमि से पोषक तत्व लेना शुरू कर देती हैं। यदि पौधों को इस अवस्था पर पर्याप्त पानी नहीं मिलता तो छोटी और नई जड़े पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती हैं, जो पौधों की वृद्धि को बाधित करता है।
कल्ले निकलते समय: गेहूं की बुवाई के ४० से ४५ दिन बाद यह समय आता है। पौधों में कल्ले इस समय निकलते हैं इस स्थिति में सिंचाई करने पर कल्लों की संख्या अधिक होती है।
तनों में गॉठ बनने की अवस्था—यह बुवाई के 60 से 65 दिन बाद होता है इस अवस्था में सिंचाई करने से पौधे की बढ़वार और दानों का पता चलता है।
फूल आने पर: गेहूं की बुवाई के 85 से 90 दिन बाद फूल आने लगते हैं इस अवस्था में सिंचाई बालियों की संख्या और लम्बाई बढ़ाती है।
दानों की दूधिया अवस्था पर—फसल की यह अवस्था 110 से 115 दिन बाद शुरू होती है, जब सिंचाई दानों के भराव को प्रभावित करती है, जिससे दाना पूरी तरह से विकसित होता है। इसलिए सिंचाई की व्यवस्था करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पानी की उपलब्धता सिंचाई की मात्रा निर्धारित करती है। पहले बताई गयी सभी अवस्थाओं पर सिंचाई न होने पर उपलब्धता के हिसाब से सिंचाई की जा सकती है, अगर सिंचाई की पूर्ण सुविधा नहीं है।
एक सिंचाई –
(1) का पानी उपलब्ध हो तो – बुवाई के 30-35 दिन
दो सिंचाई-
(1) क्राउन रूट या द्वितीयक जडे निकलते समय
(2) फूल आने पर
तीन सिंचाई-
(1) क्राउन रूट या द्वितीयक जडे निकलते समय
(2) तनों में गांठ बनते समय
(3) फूल आने पर
चार सिंचाई-
(1) क्राउन रूट या द्वितीयक जडे निकालते समय
(2) कल्ले निकलने की अन्तिम अवस्था पर
(3) तनों में गांठ बनते समय
(4) फूल आने पर.
2) जौ: गेहूं की अपेक्षा जौ की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। जौ अपेक्षाकृत अधिक सूखा सहन करता है। ज्यादातर जौ उपजाऊ फसल है। जौ की फसल को अक्सर तीन सिंचाई की जरूरत होती है।
पहले बोने के 30 दिन बाद, 60 से 75 दिन बाद और तीसरी बार दूधिया अवस्था पर सिंचाई करना पर्याप्त होता है। लंबी बढ़ने वाली किस्मों में दो बार सिंचाई करना फायदेमंद होता है: एक बोने के ३० से ३५ दिन बाद और दूसरा दूधिया अवस्था में। रबी मौसम में वर्षा होने पर सिंचाई को कम करना चाहिए। सिंचाई का पानी उपलब्ध होने पर सक्रिय फुटान बोने के ३० से ३५ दिन बाद देना चाहिए।
3) चना: चना अक्सर वर्षा आधारित क्षेत्रों में खेती की जाती है। चना फसल को दो बार सिंचाई करने की सलाह दी गई है। सिंचाई को बुवाई के ४०-५० दिन बाद (पौधे में फूल की कली बनते समय) और बुवाई के ७०-७५ दिन बाद (फली में दाने बनते समय) करने से अच्छी उपज मिलती है।
4) मसूर – पानी की उपलब्धता होने पर मसूर की खेती अक्सर असिंचित क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन बुवाई के 45 से 50 दिन बाद फूल आने से पहले और 60 से 65 दिन बाद फली बनने पर सिंचाई करना अधिक फायदेमंद होता है। यदि उपलब्ध है, तो 60 से 65 दिन में सिंचाई करना चाहिए। मसूर को बहुत कम पानी चाहिए। इसलिए हल्की सिंचाई हमेशा करनी चाहिए, अन्यथा पौधों की वानस्पतिक वृद्धि अधिक होगी, जो चलते उत्पादन को कम कर देगी।
5) मटर – मटर उन्नत और देशी मटर दो बार सिंचाई की जरूरत है। फूल बनने पर पहली बार सिंचाई करनी चाहिए, फिर फली बनने पर दूसरी बार। पानी हमेशा हल्का होना चाहिए। जिससे पानी का भराव और ठहराव न हो, अन्यथा फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
6) तोरिया और सरसों– सिंचित नमी में भी सरसों और तोरिया को उगाया जाता है। सरसों की फसल अच्छी पैदावार के लिए दो बार सिंचाई करनी चाहिए। पहली बार फूल आने से पहले और दूसरी बार फली में दाने बनते समय सिंचाई करनी चाहिए। यदि पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध है, तो वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में अधिक सिंचाई करने से उत्पादन बेहतर होता है।
सिंचाई के लिए आवश्यक जल की मात्रा: सिंचाई के लिए उतनी ही जल की आवश्यकता होनी चाहिए, अन्यथा इसका विपरीत प्रभाव फसल पर पड़ता है। पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि ऊपरी सतह नम हो सके और अंकुरण आसानी से हो सके. इसके बाद हर बार 5 से 6 सेमी0 से अधिक नहीं सिंचाया जाना चाहिए क्योंकि अधिक पानी रिसकर भूमि में चला जाता है और वायु संचार को प्रभावित करता है।
• सावधानियां: सिंचाई करते समय ध्यान रहे कि हर क्यारी में समान मात्रा में पानी डाला जाए।
• फसल दूधिया होने पर हल्की सिंचाई करें।
• पौधे हवा चलने पर गिरने का डर रहता है, इसलिए सिंचाई को शांत वातावरण में ही करें।
• भारी मृदा अधिक जल धारण कर सकती है, इसलिए पानी अधिक समय तक रहता है।ऐसी स्थिति में सिंचाई कम करें।
• रेतीली मृदा को बार-बार सिंचाई चाहिए।
• अधिक रेतीली मृदा को फुहार से सिंचाई करें ताकि लिंचिंग से पानी कम नष्ट हो।
किसान द्वारा बताई गई बातों का ध्यान रखते हुए रबी फसलों में सिंचाई की व्यवस्था करेंगे तो निश्चित रूप से पर्याप्त उत्पादन मिलेगा। वे जल का अनावश्यक प्रयोग रोककर पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देंगे।
