इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा, पोल्ट्री फीड उद्योग पर असर
मक्का (Maize) भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। इसकी बढ़ती मांग के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है। खासकर इथेनॉल उत्पादन में मक्के की भूमिका अहम हो गई है, जिससे इसकी खेती को और अधिक बढ़ावा मिल रहा है।
सरकार और अनुसंधान संस्थान हाइब्रिड किस्मों और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने पर जोर दे रहे हैं, जिससे किसानों को अधिक पैदावार और बेहतर मुनाफा मिल सके। लेकिन, इथेनॉल के लिए मक्के की जरूरत बढ़ने से पोल्ट्री फीड उद्योग पर भी असर पड़ा है, जिससे इसके दामों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
आइए विस्तार से जानते हैं कि मक्के की खेती से किसानों को कैसे लाभ हो रहा है, इथेनॉल उत्पादन से इसका क्या संबंध है और पोल्ट्री फीड उद्योग पर इसका क्या असर पड़ रहा है।
मक्के की खेती क्यों हो रही है फायदेमंद?
मक्का एक बहुपयोगी फसल है, जिसका उपयोग खाद्य पदार्थ, पोल्ट्री फीड, औद्योगिक उत्पाद और इथेनॉल उत्पादन में किया जाता है। भारत में इसे खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगाया जा सकता है, जिससे किसान इसे सालभर उगा सकते हैं और अच्छी कमाई कर सकते हैं।
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इथेनॉल उत्पादन में उपयोग
सरकार इथेनॉल मिश्रण नीति के तहत पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने को बढ़ावा दे रही है। पहले इथेनॉल के लिए गन्ने पर निर्भरता थी, लेकिन अब मक्के से भी इथेनॉल बनाया जा रहा है, जिससे इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। मक्के से बनने वाले इथेनॉल की कीमत अधिक होने के कारण किसानों को अच्छी आमदनी मिल रही है। -
पोल्ट्री फीड और पशु आहार में मक्का जरूरी
मक्के का उपयोग मुर्गियों और मवेशियों के चारे के रूप में होता है। पोल्ट्री फार्मिंग में इसकी अहम भूमिका होती है, क्योंकि यह पशुओं को ऊर्जा देने का अच्छा स्रोत है। इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्के की खपत बढ़ने से पोल्ट्री उद्योग में मक्के की कीमतों पर असर पड़ा है। -
हाइब्रिड और उन्नत किस्मों से अधिक पैदावार
सरकार और कृषि अनुसंधान संस्थान किसानों को हाइब्रिड मक्के की किस्मों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ये किस्में कम समय में ज्यादा उत्पादन देती हैं, सूखा सहनशील होती हैं और रोगों से लड़ने की क्षमता रखती हैं। इससे किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा हो रहा है। -
मक्के का बढ़ता औद्योगिक उपयोग
मक्के से कई तरह के स्टार्च, बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक, मिठाइयाँ और औषधियाँ बनाई जाती हैं। इसका उपयोग बियर और अन्य एल्कोहलिक पेय पदार्थों में भी किया जाता है, जिससे इसकी मांग बनी रहती है।
इथेनॉल उत्पादन में मक्के की भूमिका
भारत सरकार 2030 तक 20% इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने के लिए मक्के को एक प्रमुख स्रोत के रूप में बढ़ावा दे रही है।
- इथेनॉल उत्पादन से मक्के की मांग कैसे बढ़ी?
पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम करने और क्लीन एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित किया। पहले इथेनॉल मुख्य रूप से गन्ने से बनाया जाता था, लेकिन गन्ने की सीमित उपलब्धता के कारण अब मक्के को भी इसमें शामिल किया गया। मक्के से इथेनॉल निकालने की प्रक्रिया गन्ने से सस्ती और अधिक टिकाऊ होती है। सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्के पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ाया, जिससे किसानों को अधिक लाभ हो रहा है।
पोल्ट्री फीड उद्योग पर पड़ रहा असर
इथेनॉल उत्पादन में मक्के की खपत बढ़ने से पोल्ट्री और पशु आहार उद्योग पर प्रभाव पड़ा है।
- प्रभाव:
पोल्ट्री और पशुपालन उद्योग को मक्का महंगा मिल रहा है, जिससे मुर्गीपालन और डेयरी उत्पादों के दाम बढ़ सकते हैं। पोल्ट्री फार्मिंग में मक्का मुख्य चारा होता है, इसकी कीमत बढ़ने से मुर्गीपालकों की लागत बढ़ गई है। इससे अंडे, चिकन और दूध के दाम भी प्रभावित हो सकते हैं।
हालांकि, सरकार इसके समाधान के लिए कुछ कदम उठा रही है, जैसे कि अन्य चारे के विकल्पों को बढ़ावा देना और मक्के के आयात पर विचार करना।
मक्के की खेती से किसानों को हो रहा अधिक मुनाफा
आज मक्का किसानों के लिए एक लाभदायक फसल बन गई है। बढ़ती मांग और सरकार की नीतियों के कारण इसकी कीमतों में स्थिरता बनी हुई है।
- मक्के की खेती से होने वाली आमदनी (1 हेक्टेयर पर अनुमानित गणना)
| खर्च का विवरण | रकम (₹ में) |
|---|---|
| बीज, खाद, उर्वरक | 10,000 |
| सिंचाई और रखरखाव | 8,000 |
| मजदूरी और अन्य खर्चे | 7,000 |
| कुल लागत | 25,000 |
| उत्पादन (क्विंटल में) | 70-80 क्विंटल |
| बाजार मूल्य (₹ 2,000 प्रति क्विंटल) | 1,40,000 से 1,60,000 |
| कुल मुनाफा | 1.15 लाख से 1.35 लाख प्रति हेक्टेयर |
अगर कोई किसान 10 हेक्टेयर में मक्का उगाए, तो वह सालाना 12-15 लाख रुपये तक कमा सकता है।
कैसे करें मक्के की उन्नत खेती?
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हाइब्रिड बीजों का चयन करें
सरकार द्वारा अनुशंसित उन्नत बीज जैसे सीओएच (COH) 3, डीएमएच (DMH) 121, पीएमएच (PMH) 1 आदि का उपयोग करें। -
सिंचित भूमि और उपयुक्त जल निकासी का ध्यान रखें
मक्के की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली भूमि होनी चाहिए। -
समय पर बुवाई करें
खरीफ सीजन – जून-जुलाई
रबी सीजन – अक्टूबर-नवंबर
जायद सीजन – फरवरी-मार्च -
जैविक खाद और उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की सही मात्रा दें। -
कीट और रोग नियंत्रण करें
मक्के की फसल में फॉल आर्मीवॉर्म सबसे बड़ा खतरा है, इससे बचाव के लिए जैविक और रासायनिक कीटनाशकों का सही उपयोग करें।
निष्कर्ष
मक्के की बढ़ती मांग ने किसानों को नई संभावनाएं दी हैं। इथेनॉल उत्पादन में इसके उपयोग से किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है, जिससे उनकी आमदनी में इजाफा हुआ है। अगर किसान नई तकनीकों, उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाएं, तो वे मक्का की खेती से लाखों रुपये कमा सकते हैं। और पढ़े
