बंपर पैदावार और बढ़िया कमाई की उम्मीद!
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़: जैसे-जैसे रबी फसलें जैसे गेहूं और दलहन की कटाई की तैयारी हो रही है, किसानों के लिए यह एक बेहतरीन अवसर है। कई किसान रबी फसल के बाद अपने खेतों को खाली छोड़ देते हैं, जबकि यह एक आदर्श समय है कुछ फसलों की बुवाई करने का, जो न केवल लाभकारी हो सकती हैं बल्कि किसान की मेहनत का फल भी बढ़ा सकती हैं। गेहूं और दलहन की कटाई के बाद तिल, चना और मूंग जैसी फसलों की खेती करने से किसानों को पर्याप्त मुनाफा हो सकता है।
किसानों के लिए फायदेमंद फसलें: तिल, चना, और मूंग
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद तिल, चना और मूंग जैसी फसलों की बुवाई करना किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। इन फसलों की बुवाई से किसान न केवल अपनी खेतों की उर्वरकता बनाए रख सकते हैं, बल्कि बाजार में अच्छी कीमत पर इन फसलों को बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं।
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मूंग की खेती से दोहरा लाभ:
मूंग की खेती उन किसानों के लिए बेहद लाभकारी हो सकती है, जो रबी फसल की कटाई के बाद एक त्वरित और फायदे का सौदा चाहते हैं। मूंग की फसल सिर्फ 40 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इससे किसान खरीफ सीजन के पहले मूंग की फसल काट सकते हैं और फिर उसी भूमि में धान की फसल भी उगा सकते हैं। इस प्रकार मूंग की खेती से किसानों को दोहरा लाभ मिल सकता है। साथ ही, मूंग की खेती को हरा खाद के रूप में धान की खेती में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे किसानों को उर्वरक पर खर्च की बचत होती है और खेत की उर्वरक क्षमता में भी वृद्धि होती है। मूंग की खेती से मिट्टी की जलधारण क्षमता में भी सुधार होता है।
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तिल की खेती: कम पानी में उच्च लाभ
तिल की खेती भी एक बेहद लाभकारी विकल्प हो सकती है। यह फसल न केवल कम पानी में उगाई जा सकती है, बल्कि नीलगाय जैसी जंगली जानवरों से भी इससे बची रहती है, जो आमतौर पर अन्य फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। तिल की फसल 85 से 90 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे किसान इसे जल्दी ही बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं। खास बात यह है कि तिल की कीमत अब अच्छी खासी बढ़ चुकी है, जो कि किसानों के लिए एक अच्छा लाभदायक विकल्प बन गया है। एक हेक्टेयर में तिल की खेती से 6 से 7 क्विंटल तक उपज मिल सकती है और तिल के बाजार भाव इन दिनों 10,000 से 15,000 रुपये प्रति क्विंटल तक हो सकते हैं।
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चना की खेती: लंबी अवधि में अच्छा मुनाफा
चना की फसल भी एक अन्य लाभकारी विकल्प है। चना, जो एक प्रमुख दलहन है, न केवल प्रोटीन से भरपूर होता है बल्कि बाजार में इसकी मांग भी अधिक रहती है। चना की खेती में किसानों को पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती, और यह फसल लगभग 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके अलावा, चने की खेती के बाद खेतों में मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार रहती है, जिससे अगले मौसम में अन्य फसलों की खेती करने में मदद मिलती है।
मिट्टी की उर्वरक क्षमता और जलधारण शक्ति में वृद्धि:
गैर पारंपरिक फसलों की बुवाई से किसानों को भूमि की उर्वरता बनाए रखने में भी मदद मिलती है। खासकर मूंग और चना जैसी फसलों के साथ, खेतों की मिट्टी में पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है, जिससे लंबे समय में खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा, मूंग जैसी फसलों से खेतों में जलधारण की क्षमता भी बेहतर होती है, जो विशेष रूप से गर्मी में फायदेमंद साबित होती है, जब पानी की कमी हो सकती है।
विपणन के नए अवसर:
इन फसलों की बिक्री के लिए किसानों को विपणन का एक अच्छा अवसर मिल सकता है। जहां तिल, मूंग और चना की मांग बढ़ रही है, वहीं इस प्रकार की फसलों का बाजार मूल्य भी अच्छा है। किसानों को केवल सही समय पर सही फसल की बुवाई करने और उसका उचित विपणन करने की आवश्यकता है।
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण:
इन फसलों को उगाने से खेतों में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है। तिल और मूंग जैसी फसलों को कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे पानी की बचत होती है। इसके अलावा, इन फसलों की खेती से खेतों में जैव विविधता भी बनी रहती है, जो प्राकृतिक पर्यावरण को संजीवनी देती है।
निष्कर्ष:
रबी फसल की कटाई के बाद किसानों को तिल, मूंग और चना जैसी फसलों की खेती से लाभ उठाना चाहिए। इन फसलों की कम समय में पैदावार होती है और यह किसानों को त्वरित मुनाफा दिला सकती हैं। इसके अलावा, इन फसलों से खेतों की उर्वरक क्षमता बनाए रखने में भी मदद मिलती है, जो आगे आने वाले समय में किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
