सर्दियों में मक्के की खेती करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। कृषि विशेषज्ञों ने मक्के की बुवाई से लेकर उसकी कटाई और कीट प्रबंधन तक कई अहम सुझाव दिए हैं, जिससे किसान बंपर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार, शीतकालीन मक्के की बुवाई 15 अक्टूबर से शुरू होकर नवंबर के अंत तक चलती है। इसका मतलब यह है कि किसानों के पास अभी भी बुवाई के लिए कुछ समय बचा है। सही तकनीक और उन्नत विधियों का पालन करके किसान मक्के की अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं और अपने मुनाफे को बढ़ा सकते हैं।
मक्के की खेती क्यों महत्वपूर्ण है?
1) मुख्य खाद्य स्रोत: मक्का भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और इसका उपयोग आटा, चिप्स, पॉपकॉर्न और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
2) पशु आहार का मुख्य स्रोत: मक्के का उपयोग पशु चारा और पोल्ट्री फीड में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
3) बाजार में उच्च मांग: औद्योगिक उपयोग के कारण इसकी मांग सालभर बनी रहती है।
4) कम समय में तैयार फसल: यह 100-120 दिनों में तैयार हो जाता है, जिससे किसानों को जल्दी मुनाफा मिलता है।
सर्दियों में मक्के की खेती के लिए उपयुक्त समय
1. बुवाई का सही समय:
- शीतकालीन मक्के की बुवाई 15 अक्टूबर से नवंबर के अंत तक की जाती है।
- अगर देरी से बुवाई की जाती है, तो उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
2. जलवायु और तापमान:
- मक्के की खेती के लिए 15-25°C का तापमान आदर्श होता है।
- सर्दी के मौसम में दिन में हल्की धूप और रात में ठंडक होने से पौधों की अच्छी वृद्धि होती है।
मक्के की बुवाई की उन्नत तकनीक
1. उपयुक्त मिट्टी का चयन
- मक्के की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
- मिट्टी की जल धारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए ताकि फसल को आवश्यक नमी मिलती रहे।
2. खेत की तैयारी
- बुवाई से पहले खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करें।
- जैविक खाद या गोबर खाद का उपयोग करें।
- मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखें।
3. उन्नत बीजों का चयन और बीज उपचार
- हाइब्रिड बीजों का उपयोग करें, जैसे कि HQPM-1, HQPM-5, PMH-1, PMH-3।
- बीजों को बोने से पहले थायरम (2 ग्राम प्रति किलो बीज) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें।
- बुवाई के लिए 20-25 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
4. बुवाई की विधि
- लाइन बुवाई विधि अपनाएं, जिससे पौधों को उचित मात्रा में जगह मिल सके।
- कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें।
- बीज को 4-5 सेमी गहराई में बोएं ताकि अंकुरण अच्छा हो।
सिंचाई और खाद प्रबंधन
1. सिंचाई के नियम:
- पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
- इसके बाद, 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
- दाने बनने की अवस्था में अच्छी सिंचाई आवश्यक होती है।
2. खाद और उर्वरक प्रबंधन:
- 25-30 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर दें।
- 120-150 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस, और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर दें।
- 50% नाइट्रोजन बुवाई के समय, 25% 30 दिनों बाद और 25% 60 दिनों बाद दें।
कीट और रोग नियंत्रण
1. कीट प्रबंधन:
- स्टेम बोरर: प्रभावित पौधों को हटाएं और जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
- फॉल आर्मी वर्म: नीम का तेल (5ml प्रति लीटर पानी) छिड़कें।
- मक्का का तना छेदक: क्लोरोपायरीफॉस (2ml प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
2. रोग प्रबंधन:
- पत्तियों पर धब्बे: कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
- जड़ सड़न रोग: फसल चक्र अपनाएं और जलभराव से बचाव करें।
मक्के की कटाई और उत्पादन
- मक्का 100-120 दिनों में पककर तैयार हो जाता है।
- कटाई के लिए दाने का नमी स्तर 20% से कम होना चाहिए।
- औसतन 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन हो सकता है।
किसानों के लिए सरकारी योजनाएं और लाभ
1) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – किसानों को सस्ती सिंचाई सुविधाएं मिलती हैं।
2) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) – मक्का उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है।
4) फसल बीमा योजना – प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को बीमा सुविधा मिलती है।
Conclusion
शीतकालीन मक्के की खेती किसानों के लिए एक बेहतरीन अवसर हो सकती है। सही समय पर बुवाई, उचित खाद और उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करके किसान बंपर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
अगर किसान सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाएं, तो कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
