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Mansoon > Blog > Blog > नौकरी छोड़ किसान बने विनोद दशोरा ने जैविक पपीते की खेती से कमाया शानदार मुनाफा, जानिए उनकी सफलता की कहानी!
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नौकरी छोड़ किसान बने विनोद दशोरा ने जैविक पपीते की खेती से कमाया शानदार मुनाफा, जानिए उनकी सफलता की कहानी!

mansoon.info
Last updated: 2025/02/25 at 9:58 PM
By mansoon.info

Vinod Dashora, Rajasthan का स्वस्थ कृषक, की सफलता की कहानी

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के विनोद दशोरा पिछले पांच सालों से सरकारी नौकरी छोड़कर पंच तत्वों पर आधारित जैविक खेती कर रहे हैं। आजकल वह पपीते की जैविक खेती कर रहे हैं। ऐसे में आज हम प्रगतिशील किसान विनोद की सफलता की कहानी जानेंगे।

Contents
Vinod Dashora, Rajasthan का स्वस्थ कृषक, की सफलता की कहानीशुरुआती दौर: नौकरी से खेती तक का सफरपंच तत्व आधारित जैविक खेती की ओर कदमपपीते की खेती: एक लाभदायक विकल्पपौधे की गुणवत्ता और नर्सरी का चयनउत्पादन और लागत का विवरणमिट्टी की जांच और गोबर खाद का उपयोगरोग प्रबंधन: जैविक तरीके से समाधानड्रिप इरिगेशन: पानी की बचत और सही सिंचाईशानदार मुनाफा: जैविक खेती का परिणाम

विनोद दशोरा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पिछले पांच वर्षों से पंच तत्वों पर आधारित जैविक खेती कर रहे हैं। उनकी सफलता की कहानी ने आसपास के किसानों को प्रेरणा दी है। इलेक्ट्रॉनिक्स डिप्लोमा करने के बाद विनोद ने कुछ समय तक नौकरी की, लेकिन बाद में उन्होंने खेती करने का फैसला किया। आज वह जैविक रूप से पपीते की रेड लेडी 796 किस्म की खेती करके अच्छे पैसे कमा रहे हैं।

इस सफलता के पीछे प्रगतिशील किसान विनोद की लगन, मेहनत और जैविक खेती के प्रति उनका समर्पण है। विनोद ने दिखाया कि सही तरीके से खेती करने से न केवल पर्यावरण को फायदा हो सकता है बल्कि आर्थिक लाभ भी हो सकता है। ऐसे में आज हम प्रगतिशील किसान विनोद की सफलता की कहानी जानेंगे।

शुरुआती दौर: नौकरी से खेती तक का सफर

नौकरी से प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा ने अपने करियर की शुरुआत की। उनकी नौकरी अच्छी थी और उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक डिप्लोमा किया था। लेकिन उन्हें खेती से हमेशा लगाव था। उन्होंने सोचा कि खेती को ही अपनी आय का माध्यम बनाकर अपने पैतृक काम को आगे बढ़ाया जाए। इस विचार से उन्होंने नौकरी छोड़ दी और जैविक खेती शुरू की। उन्हें शुरुआत में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे हार नहीं मानी और निरंतर मेहनत करते रहे।

पंच तत्व आधारित जैविक खेती की ओर कदम

पिछले पांच वर्षों से, प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा ने पंच तत्वों पर आधारित जैविक खेती शुरू की है। खेती में पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का उपयोग किया जाता है। यह खेती रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के बिना प्राकृतिक तरीके से की जाती है। इस तरह की खेती न सिर्फ पर्यावरण को सुधारती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखती है। विनोद ने इस तरह की खेती करके न केवल अपने खेतों को स्वस्थ बनाया बल्कि अपने उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ाई।

पपीते की खेती: एक लाभदायक विकल्प

विनोद दशोरा ने अब जैविक पपीते की खेती शुरू की है। वह रेड लेडी 796 नामक उन्नत पपीते की खेती करते हैं। यह किस्म उत्पादन में बेहतर है और इसके मोटे फलों का छिलका दूर-दूर के बाजारों में बेचना आसान है। पपीते की यह किस्म आठ से दस महीने में उत्पादन देती है और चौबीस महीने तक निरंतर उत्पादन देती है। विनोद इस तरह की खेती करते रहता है।

पौधे की गुणवत्ता और नर्सरी का चयन

विनोद दशोरा, एक प्रगतिशील किसान, पपीते के पौधे अच्छी नर्सरी से लेते हैं। उनका मानना है कि अच्छे उत्पादन का आधार पौधे की गुणवत्ता है। वह पौधे से 8 फीट और क्यारी से 8 फीट की दूरी रखता है। इस तरह की दूरी रखने से पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और उन्हें अच्छी तरह से विकसित होने की अनुमति मिलती है। विनोद ने बताया कि एक एकड़ जमीन में लगभग 750-800 पौधे लगते हैं और एक पौधा 25-30 रुपए में मिलता है।

उत्पादन और लागत का विवरण

कृषि जागरण से बातचीत में विनोद दशोदा ने बताया कि एक एकड़ जमीन पर पपीते की खेती करने पर लगभग 1 लाख रुपए की लागत आती है। इसमें पौधे, खाद, सिंचाई और अन्य खर्च शामिल हैं। पपीते के एक पौधे से प्रति एकड़ लगभग 150 क्विंटल उत्पादन मिलता है और उत्पादन 40 से 80 किलो तक होता है। विनोद ने बताया कि जैविक खेती से उनके उत्पादों की गुणवत्ता और मूल्य अच्छे होते हैं। वह अपनी उपज को अभीतक 50 रुपए प्रति किलो तक बेच चुके हैं।

मिट्टी की जांच और गोबर खाद का उपयोग

विनोद दशोरा, एक प्रगतिशील किसान, मिट्टी की जांच करते हैं और उसके अनुसार खाद का उपयोग करते हैं। उन्हें लगता है कि मिट्टी की जांच करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि मिट्टी में किस तरह के पोषक तत्वों की कमी है, जिससे खाद का उपयोग किया जा सकता है। वह गोबर खाद को साफ करके उसे डालते हैं। इस तरह की खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है और पर्यावरण को भी बेहतर बनाती है।

रोग प्रबंधन: जैविक तरीके से समाधान

पपीते की खेती में जड़ गलन और फल मक्खी रोग का खतरा रहता है। विनोद दशोरा इन बीमारियों का जैविक समाधान करते हैं। वह जैविक कीटनाशकों की जगह रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। इस तरह के कीटनाशक न केवल पर्यावरण को बचाते हैं, बल्कि फसलों को भी नहीं नुकसान पहुंचाते हैं।

ड्रिप इरिगेशन: पानी की बचत और सही सिंचाई

विनोद दशोरा अपने खेतों को ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई करते हैं। ड्रिप इरिगेशन फसलों को सही मात्रा में पानी देने का एक अच्छा तरीका है और पानी भी बचाता है। पानी की बचत करने के साथ-साथ इस विधि से फसलों को सही तरीके से पोषण मिलता है।

शानदार मुनाफा: जैविक खेती का परिणाम

विनोद दशोरा जैविक खेती से शानदार मुनाफा कमा रहे हैं, जो उनकी लगन और मेहनत का परिणाम है। जैविक खेती से उनके उत्पादों की गुणवत्ता और बाजार में अच्छी कीमत मिलती है, उन्होंने बताया। उनकी जैविक पपीते की खेती ने न सिर्फ उनका जीवन बदल दिया, बल्कि आसपास के किसानों को भी प्रेरित किया है कि वे भी जैविक खेती अपनाएं।

विनोद की सफलता की कहानी यह साबित करती है कि जैविक खेती में मेहनत और सही दिशा में किया गया प्रयास बहुत अच्छा परिणाम दे सकता है। एक नौकरी छोड़कर खेती में कदम रखने वाले विनोद दशोरा अब प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं और उनकी सफलता का यह सफर अन्य किसानों के लिए भी एक उदाहरण है।

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